23. और जिस स्थान को तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने के लिये चुन ले उस में अपने अन्न, और नये दाखमधु, और टटके तेल का दशमांश, और अपने गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के पहिलौठे अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने खाया करना; जिस से तुम उसका भय नित्य मानना सीखोगे।
24. परन्तु यदि वह स्थान जिस को तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बानाए रखने के लिये चुन लेगा बहुत दूर हो, और इस कारण वहां की यात्रा तेरे लिये इतनी लम्बी हो कि तू अपने परमेश्वर यहोवा की आशीष से मिली हुई वस्तुएं वहां न ले जा सके,
25. तो उसे बेचके, रूपये को बान्ध, हाथ में लिये हुए उस स्थान पर जाना जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा,
26. और वहां गाय-बैल, वा भेड़-बकरी, वा दाखमधु, वा मदिरा, वा किसी भांति की वस्तु क्यों न हो, जो तेरा जी चाहे, उसे उसी रूपये से मोल ले कर अपने घराने समेत अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने खाकर आनन्द करना।
27. और अपने फाटकों के भीतर के लेवीय को न छोड़ना, क्योंकि तेरे साथ उसका कोई भाग वा अंश न होगा॥
28. तीन तीन वर्ष के बीतने पर तीसरे वर्ष की उपज का सारा दशंमांश निकाल कर अपने फाटकों के भीतर इकट्ठा कर रखना;