6. जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाउद भी धन्य कहता है।
7. कि धन्य वे हैं, जिन के अधर्म क्षमा हुए, और जिन के पाप ढांपे गए।
8. धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।
9. तो यह धन्य कहना, क्या खतना वालों ही के लिये है, या खतना रहितों के लिये भी? हम यह कहते हैं, कि इब्राहीम के लिये उसका विश्वास धामिर्कता गिना गया।