17. और जब वे भीतरी आंगन के फाटकों से हो कर जाया करें, तब सन के वस्त्र पहिने हुए जाएं, और जब वे भीतरी आंगन के फाटकों में वा उसके भीतर सेवा टहल करते हों, तब कुछ ऊन के वस्त्र न पहिनें।
18. वे सिर पर सन की सुन्दर टोपियां पहिनें और कमर में सन की जांघिया बान्धें हों; किसी ऐसे कपड़े से वे कमर न बांधें जिस से पसीना होता है।
19. और जब वे बाहरी आंगन में लोगों के पास निकलें, तब जो वस्त्र पहिने हुए वे सेवा टहल करते थे, उन्हें उतार कर और पवित्र कोठरियों में रख कर दूसरे वस्त्र पहिनें, जिस से लोग उनके वस्त्रों के कारण पवित्र न ठहरें।
20. और न तो वे सिर मुण्डाएं, और न बाल लम्बे होने दें; वे केवल अपने बाल कटाएं।
21. और भीतरी आंगन में जाने के समय कोई याजक दाखमधु न पीए।