10. क्योंकि हां, क्योंकि उन्होंने “शान्ति है”, ऐसा कहकर मेरी प्रजा को बहकाया है जब कि शान्ति नहीं है; और इसलिये कि जब कोई भीत बनाता है तब वे उसकी कच्ची लेसाई करते हैं।
11. उन कच्ची लेसाई करने वालों से कह कि वह गिर जाएगी। क्योंकि बड़े जोर की वर्षा होगी, और बड़े बड़े ओले भी गिरेंगे, और प्रचण्ड आंधी उसे गिराएगी।
12. सो जब भीत गिर जाएगी, तब क्या लोग तुम से यह न कहेंगे कि जो लेसाई तुम ने की वह कहां रही?
13. इस कारण प्रभु यहोवा तुम से यों कहता है, मैं जल कर उसको प्रचण्ड आंधी के द्वारा गिराऊंगा; और मेरे कोप से भारी वर्षा होगी, और मेरी जलजलाहट से बड़े बड़े ओले गिरेंगे कि भीत को नाश करें।
14. इस रीति जिस भीत पर तुम ने कच्ची लेसाई की है, उसे मैं ढा दूंगा, वरन मिट्टी में मिलाऊंगा, और उसकी नेव खुल जाएगी; और जब वह गिरेगी, तब तुम भी उसके नीचे दब कर नाश होगे; और तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
15. इस रीति मैं भीत और उसकी कच्ची लेसाई करने वाले दोनों पर अपनी जलजलाहट पूर्ण रीति से भड़काऊंगा; फिर तुम से कहूंगा, न तो भीत रही,और न उसके लेसने वाले रहे,
16. अर्थात इस्राएल के वे भविष्यद्वक्ता जो यरूशलेम के विषय में भविष्यद्वाणी करते और उनकी शान्ति का दर्शन बताते थे, परन्तु प्रभु यहोवा की यह वाणी है, कि शान्ति है ही नहीं।
17. फिर हे मनुष्य के सन्तान, तू अपने लोगों की स्त्रियों से विमुख हो कर, जो अपने ही मन से भविष्यद्वाणी करती हे; उनके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर के कह,
18. प्रभु यहोवा यों कहता है, जो स्त्रियां हाथ के सब जोड़ो के लिये तकिया सीतीं और प्राणियों का अहेर करने को सब प्रकार के मनुष्यों की आंख ढांपने के लिये कपड़े बनाती हैं, उन पर हाय! क्या तुम मेरी प्रजा के प्राणों का अहेर कर के अपने निज प्राण बचा रखोगी?
19. तुम ने तो मुट्ठी मुट्ठी भर जव और रोटी के टुकड़ों के बदले मुझे मेरी प्रजा की दृष्टि में अपवित्र ठहरा कर, और अपनी उन झूठी बातों के द्वारा, जो मेरी प्रजा के लोग तुम से सुनते हैं, जो नाश के योग्य न थे, उन को मार डाला; और जो बचने के योग्य न थे उन प्राणों को बचा रखा है।