8. वह पहाड़ों पर चढ़ गया, और तराईयों के मार्ग से उस स्थान में उतर गया जिसे तू ने उसके लिये तैयार किया था।
9. तू ने एक सिवाना ठहराया जिस को वह नहीं लांघ सकता है, और न फिरकर स्थल को ढांप सकता है॥
10. तू नालों में सोतों को बहाता है; वे पहाड़ों के बीच से बहते हैं,
11. उन से मैदान के सब जीव- जन्तु जल पीते हैं; जंगली गदहे भी अपनी प्यास बुझा लेते हैं।
12. उनके पास आकाश के पक्षी बसेरा करते, और डालियों के बीच में से बोलते हैं।
13. तू अपनी अटारियों में से पहाड़ों को सींचता है तेरे कामों के फल से पृथ्वी तृप्त रहती है॥