21. हे मेरे पुत्र, ये बातें तेरी दृष्टि की ओट न हाने पाएं; खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर,
22. तब इन से तुझे जीवन मिलेगा, और ये तेरे गले का हार बनेंगे।
23. और तू अपने मार्ग पर निडर चलेगा, और तेरे पांव में ठेस न लगेगी।
24. जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा, जब तू लेटेगा, तब सुख की नींद आएगी।
25. अचानक आने वाले भय से न डरना, और जब दुष्टों पर विपत्ति आ पड़े, तब न घबराना;