20. और इन से अधिक जो कुछ तुझे अपने परमेश्वर के भवन के लिये आवश्यक जान कर देना पड़े, वह राजखजाने में से दे देना।
21. मैं अर्तक्षत्र राजा यह आज्ञा देता हूँ, कि तुम महानद के पार के सब खजांचियों से जो कुछ एज्रा याजक, जो स्वर्ग के परमेश्वर की व्यवस्था का शास्त्री है, तुम लोगों से चाहे, वह फुतीं के साथ किया जाए।
22. अर्थात सौ किक्कार तक चान्दी, सौ कोर तक गेहूं, सौ बत तक दाखमधु, सौ बत तक तेल और नमक जितना चाहिये उतना दिया जाए।