3. और भवन के मन्दिर के साम्हने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की थी, अर्थात भवन की चौड़ाई के बराबर थी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के साम्हने थी, वह दस हाथ की थी।
4. फिर उसने भवन में स्थिर झिलमिलीदार खिड़कियां बनाईं।
5. और उसने भवन के आसपास की भीतों से सटे हुए अर्थात मन्दिर और दर्शन-स्थान दोनों भीतों के आसपास उसने मंजिलें और कोठरियां बनाईं।