17. इस संसार के धनवानों को आज्ञा दे, कि वे अभिमानी न हों और चंचल धन पर आशा न रखें, परन्तु परमेश्वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है।
18. और भलाई करें, और भले कामों में धनी बनें, और उदार और सहायता देने में तत्पर हों।
19. और आगे के लिये एक अच्छी नेव डाल रखें, कि सत्य जीवन को वश में कर लें॥
20. हे तीमुथियुस इस थाती की रखवाली कर और जिस ज्ञान को ज्ञान कहना ही भूल है, उसके अशुद्ध बकवाद और विरोध की बातों से परे रह।
21. कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके, विश्वास से भटक गए हैं॥ तुम पर अनुग्रह होता रहे॥